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UP में एक ही महिला की 30 महीने में 25 बार डिलिवरी, 5 बार नसबंदी, बिहार के गर्भाशय घोटाले की आ गई याद

आगराःबिहार का यूटरस स्कैम आज भी हर किसी को याद है. क्योंकि जिस तरह से सरकारी योजना का लाभ उठाने के लिए इस घोटाले को अंजाम दिया गया, वो हैरान कर देने वाला था. ऐसा ही एक मामला आगरा के फतेहाबाद जिले से सामने आया है, जहां सरकारी योजना का पैसा लूटने के लिए विभाग के कुछ कर्मचारियों ने मिलकर एक ही औरत की 30 महीने में 25 बार डिलिवरी करा दी और यही नहीं 5 बार नसबंदी भी करा दी. मामला तब सामने आया, जब स्वास्थ्य केंद्र पर एक टीम ऑडिट करने पहुंची.फतेहाबाद स्थित एक समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का पूरा मामला है. यह घोटाला जननी सुरक्षा योजना और महिला नसबंदी प्रोत्साहन योजना का लाभ लेने के लिए किया गया है.

ऑडिट के दौरान घोटाला हुआ उजागर
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह पूरा घोटाला तब उजागर हुआ, तब फतेहाबाद स्थित पीएचसी की नियमित ऑडिट कराया गया. दस्तावेजों की जांच कर रही टीम उस वक्त हैरान रह गई, जब उन्हें पता चला कि एक ही महिला के नाम पर 25 डिलीवरी और 5 नसंबदी कराई गई है. इसके अलावा उस महिला को सरकारी योजनाओं का लाभ भी दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक उक्त महिला के खाते में कुल 45 हजार रुपये ट्रांसफर किए गए हैं. पूरा मामला समझने के बाद ऑडिट टीम ने आगरा के सीएमओ डॉक्टर अरुण श्रीवास्तव को सूचना दी. फिर वो मौके पर पहुंचे और मामले की जांच के आदेश दिए. उन्होंने कहा कि इस बात की विस्तृत जांच की जाएगी कि ये तकनीकी गलती है या फिर सुनियोजित घोटाला है. अगर इस मामले में कोई दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी.

बिहार का यूटरस स्कैम यानी कि गर्भाशय घोटाला
बता दें कि ऐसा ही मामला एक बिहार में सामने आया था, जहां 27511 महिलाओं व युवतियों का गर्भाशय उनकी सहमति के बिना निकाल लिया गया था. यह जालसाजी राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का अनुचित लाभ लेने के लिए विभिन्न अस्पतालों, डॉक्टरों एवं बीमा कंपनियों द्वारा की गई थी.

सरकारी योजना से जुड़ा था घोटाले का तार
बिहार का गर्भाशय घोटाला, एक गंभीर और संवेदनशील मामला था, जो 2012 में पहली बार सामने आया. यह घोटाला राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना से जुड़ा हुआ था, जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाती हैं. इस योजना का दुरुपयोग करते हुए बिहार के कई जिलों में निजी नर्सिंग होम्स और डॉक्टरों ने कथित तौर पर अनावश्यक और फर्जी गर्भाशय निकालने (हिस्टेरेक्टॉमी) के ऑपरेशन किए, ताकि सरकारी फंड से मोटी रकम हासिल की जा सके.

क्या हुआ था?
साल 2011 में शुरू हुई इस योजना के तहत, गरीब परिवारों को स्मार्ट कार्ड दिए गए थे, जिनके जरिए वे मुफ्त इलाज करवा सकते थे. लेकिन समस्तीपुर, मधुबनी, छपरा, जमुई और अरवल जैसे जिलों से ऐसी शिकायतें आईं कि कई महिलाओं का गर्भाशय बिना जरूरत के निकाल दिया गया. समस्तीपुर जिला प्रशासन की एक जांच में पता चला कि 2011 से 2012 के बीच 8,000 ऑपरेशनों में से 2,600 की दोबारा जांच की गई, जिसमें 1,300 ऑपरेशन संदिग्ध पाए गए. इनमें से 489 ऑपरेशन पूरी तरह फर्जी थे, यानी कुछ मामलों में ऑपरेशन हुआ ही नहीं, बस कागजों पर दिखाया गया. हैरानी की बात यह भी थी कि जमुई में 82 पुरुषों के नाम तक लाभार्थियों की सूची में शामिल कर लिए गए, जो इस योजना का लाभ लेने के लिए पूरी तरह गैरकानूनी था.

कैसे हुआ था बिहार का यूटरस घोटाला
बिहार के अलग-अलग जिलों में निजी नर्सिंग होम्स ने गरीब और अनपढ़ महिलाओं को डरा-धमकाकर या गलत जानकारी देकर अनावश्यक ऑपरेशन किए. कई बार तो ऑपरेशन की जरूरत नहीं थी, लेकिन पैसे के लालच में ऐसा किया गया. साथ ही कुछ मामलों में ऑपरेशन हुए भी नहीं, लेकिन कागजों पर दिखाकर सरकारी फंड हड़प लिया गया. योजना के तहत एक हिस्टेरेक्टॉमी के लिए 30,000 रुपये तक मिलते थे. अधिकारियों की साजिश का शिकार गरीब और कम पढ़ी-लिखी महिलाएं बनीं, जो अपने अधिकारों से अनजान थीं. मधुबनी और छपरा में कम उम्र की महिलाओं के गर्भाशय निकाले जाने के मामले भी सामने आए.

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