Ground Report: पर्चा बनवाने से दवा तक…इलाज नहीं, जंग लड़ रहे मरीज! ये है आगरा अस्पताल की हकीकत, जानिए

आगरा: आगरा के सरोजिनी नायडू (एसएन) मेडिकल कॉलेज कभी शहर की स्वास्थ्य सेवाओं का भरोसेमंद नाम हुआ करता था. अब यहां इलाज कराना मरीजों के लिए किसी जंग से कम नहीं है. सुबह- सुबह लंबी कतारों में खड़े मरीज जब OPD का पर्चा बनवाने आते हैं, तो उम्मीद लेकर नहीं, बल्कि सब्र और गर्मी के खिलाफ जंग की तैयारी करके आते हैं.
यहां पर्चा एक रुपये में जरूर बनता है, लेकिन लाइन में लगने का समय और धूप में तपने की कीमत कहीं ज्यादा भारी है. मरीज बताते हैं कि पर्चा बनने से पहले ही आधे लोग थक कर बैठ जाते हैं या चक्कर खाकर गिरने लगते हैं. एसएन मेडिकल कॉलेज के पर्चा हॉल में पंखे और कूलर लगे हैं, लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा होती है कि गर्मी और उमस से हालत बद से बदतर हो जाती है.
कमर में चोट है, लेकिन दो घंटे से लाइन में हूं
फ्रीगंज चौराहा निवासी आज़ाद बताते हैं कि उनके मरीज़ के कमर में चोट है, लेकिन वे खुद दो घंटे से लाइन में खड़े हैं. पर्चा अब तक नहीं बन पाया. कई बार ऐसा भी होता है कि जब तक लाइन खत्म हो और डॉक्टर के पास पहुंचें, तब तक डॉक्टर ओपीडी छोड़कर जा चुके होते हैं.
जगदीशपुरा से आए भूखंडी लाल कहते हैं कि वो पिछले एक साल से पेट की समस्या का इलाज करा रहे हैं. हर बार मेडिकल कॉलेज आकर पर्चा बनवाना, डॉक्टर को दिखाना, टेस्ट करवाना और दवा लेना इस पूरी प्रक्रिया में दिन का आधा हिस्सा खत्म हो जाता है.
लाइन में खड़े खड़े आ जाते हैं चक्कर
लंबी कतारों में घंटों खड़े रहने से मरीजों की हालत बिगड़ने लगती है. सोहेल खान नाम के मरीज ने बताया कि वो एक घंटे से कतार में खड़े हैं और गर्मी की वजह से चक्कर आने लगे हैं. कई मरीज थक कर ज़मीन पर ही बैठ जाते हैं. वहीं, हींग की मंडी से आए भूरी सिंह का कहना है कि इलाज के लिए अब 4-5 घंटे तक का समय लेकर आना जरूरी हो गया है.
भीड़ के हिसाब से काउंटर की संख्या कम है और कई बार इनमें से आधे काउंटर बंद भी रहते हैं. मरीजों को लाइन में ही पसीने से तर-बतर होना पड़ता है. किसी को खांसी है, किसी को बुखार, कोई है बुढ़ा, कोई बच्चा, लेकिन सबको एक ही कतार में खड़ा रहना पड़ता है.
कब सुधरेगी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत?
आगरा जैसे बड़े शहर के प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में इलाज से पहले ही मरीज की हिम्मत जवाब देने लगे, तो यह प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ा सवाल है. क्या केवल ओपीडी में भीड़ संभालना और मरीजों की सुविधा देना इतना मुश्किल काम है?