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पीलीभीत में बाघों के हमलों से बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष केंद्र,अब तक जा चुकी इतने लोगों की जान

आखरी अपडेट:

Pilibhit News: यूपी का पीलीभीत जिला बीते कुछ सालों में मानव वन्यजीव संघर्ष के चलते देशभर में कई बार सुर्खियों में रहा है. टाइगर रिजर्व की स्थापना के बाद से अब तक दर्जनों लोग बाघ समेत जंगली जानवरों के हमले में अ…और पढ़ें

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बाघ के हमले में मारे गए किसान का परिवार. (फाइल फोटो)

मानव वन्यजीव संघर्ष के लिहाज से बीता लगभग एक साल काफी सामान्य रहा था. लेकिन बीते एक महीने में लगातार बाघ के हमलों में अलग अलग इलाकों में हुई 4 मौतों ने एक बार फिर से पीलीभीत को सुर्खियों में ला दिया है. यूपी का पीलीभीत जिला बीते कुछ सालों में मानव वन्यजीव संघर्ष के चलते देशभर में कई बार सुर्खियों में रहा है. टाइगर रिजर्व की स्थापना के बाद से अब तक दर्जनों लोग बाघ समेत जंगली जानवरों के हमले में अपनी जान गंवा चुके हैं. शासन से लेकर स्थानीय प्रशासन के तमाम प्रयासों के बावजूद भी मानव वन्यजीव संघर्ष पर लगाम नहीं लग पा रही है.

इसके पीछे के कारणों पर लोकल 18 से बातचीत में वरिष्ठ वनजीवन पत्रकार केशव अग्रवाल ने बताया कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व का कुल कोर एरिया तकरीबन 620 वर्ग किलोमीटर है. जिसमें क्षमता के मानकों के अनुसार लगभग 20 से 25 बाघों को ही सही से रखा जा सकता है. लेकिन 2022 की बाघ गणना के आंकड़ों के अनुसार पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 73 से भी अधिक बाघ हैं. वहीं जानकारों की मानें तो असल आंकड़ा तो 110 के भी पार है. ऐसे में पीलीभीत टाइगर रिजर्व का वन क्षेत्र नए वयस्क नर बाघों की टेरिटरी बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है.

कुल एरिया तकरीबन 620 वर्ग किलोमीटर
वहीं जंगल में बाघों की बढ़ती संख्या के चलते तेंदुए जैसे अन्य हिंसक शिकारी वन्यजीव भी आबादी का रुख कर रहे हैं. जंगल से निकलकर आबादी में पहुंचने का अहम कारण यह भी है कि जंगल से सटे खेतों में वन विभाग के तमाम प्रयासों के बाद भी किसान गन्ने की फसल उगाते हैं. दरअसल बाघों के लिए गन्ने के खेत व जंगल में अंतर करना मुश्किल होता है. ऐसे में वह गन्ने के खेतों को जंगल का हिस्सा ही मानता है. वहीं धान व गेहूं की फसल को वह ग्रासलैंड समझता है. यही कारण है कि पीलीभीत में बाघ लगातार खेतों में अपनी टेरिटरी बना रहे हैं. नतीजतन कई वन्यजीवों का इंसानों से आमना सामना होने पर कई बार संघर्ष की परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं.

अब तक इतने लोगों की का चुकी है जान
पीलीभीत टाइगर रिजर्व को बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए तमाम पुरस्कार मिल चुके हैं. लेकिन यह भी स्वीकार करना होगा कि मानव वन्यजीव संघर्ष के मामले में पीलीभीत का इतिहास बेहद उतार चढ़ाव भरा रहा है. अगर आंकड़ों को देखें तो पीलीभीत में जंगली जानवरों के हमलों में अब तक तकरीबन 65 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. महज 10 वर्षों के समयकाल में इतने हादसे बेहद चिंताजनक है.

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पीलीभीत में बाघों के हमलों से बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष केंद्र, जानें वजह

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