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सरकार हमारे धन पर कब्जा कर रही, यह एक निजी मंदिर है… बांके बिहारी मंदिर सुनवाई में किसने ऐसा कहा? सुप्रीम कोर्ट में क्‍या-क्‍या हुआ

नई दिल्ली/वृंदावन: वृंदावन के ऐतिहासिक श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर जारी विवाद पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई. मंदिर से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने की, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के उस अध्यादेश को चुनौती दी गई है, जिसके अंतर्गत मंदिर की देखरेख एक ट्रस्ट को सौंपे जाने की योजना है. कोर्ट अब 5 अगस्त सुबह साढ़े 10 बजे मामले में सुनवाई करेगा.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि श्री बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्था है और सरकार इस अध्यादेश के जरिए मंदिर की संपत्ति और प्रबंधन पर अपरोक्ष नियंत्रण हासिल करना चाहती है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार मंदिर के कोष का उपयोग जमीन खरीदने और निर्माण कार्यों में करना चाह रही है, जोकि अनुचित है. दीवान ने कोर्ट से कहा कि सरकार हमारे धन पर कब्जा कर रही है. यह मंदिर एक निजी मंदिर है और हम सरकार की योजना पर एकतरफा आदेश को चुनौती दे रहे हैं. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ दीवानी मुकदमों में, जिनमें मंदिर पक्षकार नहीं था, सरकार ने पीठ पीछे आदेश हासिल कर लिए हैं.

कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि आप किसी धार्मिक स्थल को पूरी तरह निजी कैसे कह सकते हैं, वो भी तब जब वहां लाखों श्रद्धालु आते हैं? प्रबंधन निजी हो सकता है, लेकिन कोई देवता निजी नहीं हो सकते. जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी कहा कि मंदिर की आय केवल प्रबंधन के लिए नहीं, बल्कि मंदिर और श्रद्धालुओं के विकास के लिए भी होनी चाहिए.

यूपी सरकार की ओर से सीनियर लॉयर नवीन पाहवा ने कोर्ट को बताया कि सरकार यमुना तट से मंदिर तक कॉरिडोर विकसित करना चाहती है, जिससे श्रद्धालुओं को सुविधाएं मिलें और मंदिर क्षेत्र को बेहतर ढंग से संरक्षित किया जा सके. उन्होंने स्पष्ट किया कि मंदिर के धन का उपयोग केवल मंदिर से जुड़ी गतिविधियों में ही होगा. कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मंदिर का पैसा आपकी जेब में क्यों जाए? सरकार इसका उपयोग मंदिर विकास के लिए क्यों नहीं कर सकती?

कोर्ट में हुईं अहम बहसें और टिप्पणियां
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का सवाल: आपने अध्यादेश की वैधता को हाई कोर्ट में चुनौती क्यों नहीं दी?

वरिष्ठ वकील श्याम दीवान: मैं मंदिर प्रबंधन की ओर से आया हूं, हमारे पीछे से आदेश पारित कर दिए गए. हमें सुना ही नहीं गया. कृपया हमारी मिक्स्ड एप्लिकेशन को पहले सुना जाए.

कोर्ट की टिप्पणी: राज्य सरकार मंदिर फंड का दुरुपयोग नहीं कर रही, बल्कि धार्मिक पर्यटन के विकास की मंशा प्रतीत होती है.

दीवान का विरोध: यह निजी मंदिर है, न कि सार्वजनिक. मंदिर फंड हाईजैक किया जा रहा है.

राज्य का पक्ष (ASG): बांके बिहारी एक सार्वजनिक मंदिर है. इसका कोई ऐसा प्रबंधन नहीं जो कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त हो.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संतुलन के साथ हल करने के संकेत देते हुए सुझाव दिया कि वह हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज या वरिष्ठ जिला न्यायाधीश को एक न्यूट्रल समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है, जो मंदिर के कोष और व्यय पर निगरानी रखेगा. कोर्ट ने गोस्वामी समुदाय से पूछा कि क्या वे मंदिर में चढ़ावे और दान की राशि का कुछ हिस्सा श्रद्धालुओं की सुविधाओं और सार्वजनिक विकास पर खर्च कर सकते हैं. इस पर श्याम दीवान ने सहमति जताते हुए कहा कि हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कोई न्यूट्रल अंपायर रखेंगे जो कोष प्रबंधन पर निगरानी रखेंगे.

श्याम दीवान ने यह भी बताया कि मंदिर का प्रबंधन ढाई सौ से अधिक गोस्वामी कर रहे हैं और वे वर्तमान व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं. उन्होंने हाईकोर्ट के एक पुराने आदेश पर आपत्ति जताई, जिसमें दो पक्षों के निजी विवाद पर फैसला देते हुए बांके बिहारी मंदिर से जुड़ा आदेश पारित कर दिया गया था.

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर कोई नो-मेंस लैंड नहीं है और मंदिर के हित में पूर्व में रिसीवर की नियुक्ति भी की गई थी.

(इनपुट- IANS से भी)

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