सरकार हमारे धन पर कब्जा कर रही, यह एक निजी मंदिर है… बांके बिहारी मंदिर सुनवाई में किसने ऐसा कहा? सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि श्री बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्था है और सरकार इस अध्यादेश के जरिए मंदिर की संपत्ति और प्रबंधन पर अपरोक्ष नियंत्रण हासिल करना चाहती है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार मंदिर के कोष का उपयोग जमीन खरीदने और निर्माण कार्यों में करना चाह रही है, जोकि अनुचित है. दीवान ने कोर्ट से कहा कि सरकार हमारे धन पर कब्जा कर रही है. यह मंदिर एक निजी मंदिर है और हम सरकार की योजना पर एकतरफा आदेश को चुनौती दे रहे हैं. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ दीवानी मुकदमों में, जिनमें मंदिर पक्षकार नहीं था, सरकार ने पीठ पीछे आदेश हासिल कर लिए हैं.
यूपी सरकार की ओर से सीनियर लॉयर नवीन पाहवा ने कोर्ट को बताया कि सरकार यमुना तट से मंदिर तक कॉरिडोर विकसित करना चाहती है, जिससे श्रद्धालुओं को सुविधाएं मिलें और मंदिर क्षेत्र को बेहतर ढंग से संरक्षित किया जा सके. उन्होंने स्पष्ट किया कि मंदिर के धन का उपयोग केवल मंदिर से जुड़ी गतिविधियों में ही होगा. कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मंदिर का पैसा आपकी जेब में क्यों जाए? सरकार इसका उपयोग मंदिर विकास के लिए क्यों नहीं कर सकती?
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का सवाल: आपने अध्यादेश की वैधता को हाई कोर्ट में चुनौती क्यों नहीं दी?
वरिष्ठ वकील श्याम दीवान: मैं मंदिर प्रबंधन की ओर से आया हूं, हमारे पीछे से आदेश पारित कर दिए गए. हमें सुना ही नहीं गया. कृपया हमारी मिक्स्ड एप्लिकेशन को पहले सुना जाए.
दीवान का विरोध: यह निजी मंदिर है, न कि सार्वजनिक. मंदिर फंड हाईजैक किया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संतुलन के साथ हल करने के संकेत देते हुए सुझाव दिया कि वह हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज या वरिष्ठ जिला न्यायाधीश को एक न्यूट्रल समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है, जो मंदिर के कोष और व्यय पर निगरानी रखेगा. कोर्ट ने गोस्वामी समुदाय से पूछा कि क्या वे मंदिर में चढ़ावे और दान की राशि का कुछ हिस्सा श्रद्धालुओं की सुविधाओं और सार्वजनिक विकास पर खर्च कर सकते हैं. इस पर श्याम दीवान ने सहमति जताते हुए कहा कि हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कोई न्यूट्रल अंपायर रखेंगे जो कोष प्रबंधन पर निगरानी रखेंगे.
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर कोई नो-मेंस लैंड नहीं है और मंदिर के हित में पूर्व में रिसीवर की नियुक्ति भी की गई थी.
(इनपुट- IANS से भी)