Lakhimpur Kheri : सुई-धागे से अपनी किस्मत लिख रहीं ये महिलाएं, पंख बनी गुजरे जमाने की चीज

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Lakhimpur kheri news in hindi : ऐसी कारीगरी आज कम ही दिखाई देती है. पारंपरिक कलाएं धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं, लेकिन आज भी कई ऐसे लोग हैं, जो हवा के खिलाफ नई कहानी गढ़ रहे हैं.
हाइलाइट्स
- लखीमपुर की महिलाएं स्वयं सहायता समूह से आत्मनिर्भर हो रही हैं.
- चिकनकारी कढ़ाई से महिलाओं को अच्छा मुनाफा.
- रीता देवी के समूह में 10 महिलाएं पारंपरिक कढ़ाई कर रही हैं.
लखीमपुर खीरी. कढ़ाई-बुनाई कहने को गुजरे जमाने की परंपरा हो गई. एक वक्त था जब घर की बुर्जुग महिलाएं अपनी बेटियों और घर की बहुओं को सुई धागे के साथ सिलाई-कढ़ाई का ज्ञान दिया करती थीं. सूती कपड़ों, थैलों, चादर और तकियों पर हाथ से की गई कारीगरी आज कम ही दिखाई देती है. ऐसे माहौल में पारंपरिक कलाएं धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं, लेकिन आज भी कई ऐसे लोग हैं, हवा के विपरीत खड़े हैं. ये लोग पारंपरिक कला को आगे बढ़ाने में जुटे हैं. इसी से इनका जीवनयापन भी हो रहा है. जिस चीज को गुजरे जमाने का मान लिया गया था, रोजगार का माध्यम बनकर सामने आई हैं.
यूपी के लखीमपुर जिले में महिलाएं ‘स्वयं सहायता समूह में जुड़कर सुई और धागे से अपनी किस्मत बदल रही हैं. समूह की महिला रीता देवी लोकल 18 से कहती हैं कि मैं मोहम्मदी तहसील क्षेत्र के ग्राम गोकन की रहने वाली हूं. पहले हम अपने घरों का ही काम किया करते थे. जब से हम स्वयं सहायता समूह में जुड़े हैं, हमें अच्छा खासा मुनाफा हो रहा है. इससे गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं. नौकरी के लिए भटकना नहीं पड़ रहा है.
रीता देवी के अनुसार, इस समय हम चिकनकारी कढ़ाई कर रहे हैं. समूह में करीब 10 महिलाएं हैं. चिकनकारी एक तरह की कढ़ाई का काम है, जो आमतौर पर सूती कपड़े पर सफेद सूती धागे से किया जाता है. ये लखनऊ की एक फेमस पारंपरिक कढ़ाई शैली है, जिसे अक्सर “लखनवी चिकनकारी” भी कहा जाता है. चिकनकारी में हल्के और नाजुक डिजाइन बनाए जाते हैं, जिनमें फूलों, पत्तियों, बेलों और जालियों जैसे पैटर्न शामिल हैं. चिकनकारी कढ़ाई मुगल काल से चली आ रही है, जिसे नूरजहां ने लोकप्रिय बनाया.