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चारा नेपाल का, दूध भारत का सीमावर्ती किसानों की अनोखी रणनीति से हर कोई दंग

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भारत-नेपाल खुली सीमा पर ग्रामीण रोजाना अपने पशुओं को नेपाल की तरफ चराने ले जाते हैं. वहां पशु चारा खाते हैं और शाम को वापस भारत लाए जाते हैं. सुरक्षा कारणों से कई बार पशुओं की जांच और विवाद भी होता है.

एक्स

नेपाल

नेपाल बार्डर पर पशुओं को चराते भारत के लोग!

हाइलाइट्स

  • भारत-नेपाल सीमा पर ग्रामीण पशुओं को चराने ले जाते हैं.
  • पशु नेपाल में चारा खाकर भारत लौटते हैं.
  • सुरक्षा कारणों से पशुओं की जांच होती है.

बिन्नू बाल्मीकि/बहराइच- भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र के ग्रामीण खेती के साथ-साथ पशुपालन का काम भी बड़े पैमाने पर करते हैं. हर दिन वे अपने गाय, भैस और बकरियों को हरा-भरा चारा खिलाने के लिए सीमा क्षेत्र के पास लेकर जाते हैं. यह चारा नेपाल की सीमा में उगता है, जहां पशु चरते हुए नेपाल की सीमा में चले जाते हैं.

नेपाल का चारा, भारत का मुनाफा
नेपाल और भारत के बीच 110 किलोमीटर की खुली सीमा है, जिसमें नेपाल के तीन जिले शामिल हैं. इस खुली सीमा के कारण सुरक्षा जवान हमेशा सतर्क रहते हैं. सीमावर्ती इलाके के किसान और ग्रामीण पशुपालन में लगे हैं, और चारे की आवश्यकता के कारण वे रोजाना अपने पशुओं को बॉर्डर के पास लेकर जाते हैं. पशु नेपाल की तरफ जाकर चारा खाते हैं, फिर शाम तक उन्हें वापस भारत की सीमा में लाकर बांध दिया जाता है. इस तरह नेपाल का हरा-भरा चारा खाकर भारत के किसान दूध और मुनाफा कमाते हैं.

सुरक्षा में खड़ी होती हैं मुश्किलें
नेपाल की सीमा पर तैनात सुरक्षा कर्मियों की नजर जब इन पशुओं पर पड़ती है, तो वे ग्रामीणों से पूछताछ करते हैं. कई बार शक होने पर वे पशुओं को पकड़कर थाने ले जाते हैं. इसके बाद ग्रामीणों को पशुओं को छुड़ाने के लिए लंबी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. हालांकि जो पशु बॉर्डर के पास ही रहते हैं, वे आराम से सीमा पार करके चर सकते हैं, उन्हें कोई समस्या नहीं होती.

भारत-नेपाल सीमा पर यह रोजाना की गतिविधि न सिर्फ ग्रामीणों के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके साथ ही सुरक्षा और सीमा नियंत्रण के लिए भी चुनौतीपूर्ण साबित होती है. इससे जुड़े नियमों और स्थानीय समझौते को बेहतर तरीके से लागू करने की आवश्यकता है ताकि दोनों देशों के ग्रामीणों के हित सुरक्षित रह सकें.

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