यूपी में बाबा उत्पत्ति की अनोखी समाधि, यहां की राख में है चमत्कार, मिनटो में उतर जाता है जहरीले जीव-जंतुओं का जहर, जानें मान्यता

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Utpatti Das Baba Samadhi: बलिया में उत्पत्ति दास बाबा की समाधि स्थल आस्था का केंद्र है. बाबा ने प्लेग से बचाने के लिए 22 साल की उम्र में जिंदा समाधि ली थी. यहां जहरीले जीवों का जहर असर नहीं करता है.

उत्पत्ति दास बाबा की जिंदा समाधि
हाइलाइट्स
- उत्पत्ति दास बाबा की समाधि स्थल आस्था का केंद्र है.
- बाबा ने 22 साल की उम्र में जिंदा समाधि ली थी.
- यहां जहरीले जीवों का जहर असर नहीं करता है.
बलिया: यूपी के बलिया में उत्पत्ति दास बाबा की समाधि स्थल है. यह स्थान लाखों लोगों के लिए आस्था का एक बड़ा केंद्र है. यह स्थल न केवल इंसानों की सुरक्षा करता है. बल्कि बेजुबानों की भी देखरेख करता है. मान्यता है कि इस क्षेत्र में किसी भी जहरीले जीव जंतुओं का जहर प्रभावी नहीं होता है. यहां उत्पत्ति दास बाबा जिंदा समाधि लिए थे. यहां बाबा के साथ दो शिष्यों की भी समाधि स्थल है. यह जानकारी समाधि स्थल के सेवक सुदामा यादव ने दी. आइए जानते हैं इस समाधि की पूरी कहानी के बारे में…
प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने कहा कि बाबा उत्पत्ति दास का जन्म सन् 1900 ईसवी में माघ शुक्ल पंचमी को बलिया जिले के सदर तहसील के हल्दी गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम गोगा कुवंर था. जनश्रुति के मुताबिक इन्होंने पटना फुलवरिया के किसी शाह नाम के मुस्लिम अखाड़े से फकीरी की दीक्षा ली थी. क्षत्रिय कुल के महात्मा उत्पत्ति दास संगीत और रामलीला के प्रेमी थे. वह छुआछूत भेदभाव को बिलकुल नहीं मानते थे.
ग्रामीण बताते हैं यहां है चमत्कार
यहां गाय और भैंस में होने वाली तमाम बीमारियों की भी बाबा के स्थान का भस्म (राख) लगाने से दूर होता है. ग्रामीणों ने कहा कि उत्पत्ति दास बाबा की महिमा अपरंपार है. आज तक जहरीले जीव जंतुओं से किसी को कोई हानि यानी नुकसान नहीं हुआ है. यहां पर बहुत दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. बाबा के समाधि स्थल के आसपास जंगल जैसा है, लेकिन लोग जमीन पर भी सो जाते हैं. यहां भक्तों को कुछ नहीं होताहै. ऐसा चमत्कार बाबा की वजह से है.
महामारी से बचाने के लिए ली थी जिंदा समाधि
इतिहासकार ने बताया कि यहां केवल 19 साल की उम्र में सन् 1919 ईसवी में बसंत पंचमी के दिन से बाबा ने यज्ञ शुरू किया था. इसी बीच 1922 ईसवी में पूरा गांव प्लेग की चपेट में आ गया. मृत्यु के डर से लोग गांव छोड़ कर भागने लगे. गांव का गांव खत्म करने वाली महामारी प्लेग से गांव को बचाने के लिए बाबा 9 मार्च 1922 ईसवी को ध्यानस्थ हुए. प्लेग की विपदा तो टल गई. किन्तु मात्र 22 साल की आयु में बाबा ने जिन्दा समाधि ले ली.
दो संप्रदायों ने अलग-अलग किया अंतिम संस्कार
बाबा के शरीर छोड़ने के बाद 10 मार्च 1922 ईसवी को गांव के हिंदू-मुसलमान दोनों सम्प्रदायों के लोगों ने अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार बाबा के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया. मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों ने बाबा की समाधि के लिए जमीन भी दिया था. बताया जाता है कि आज भी यहां जाने से जहरीले जीव जंतुओं का जहर उतर जाता है. यहां बाबा के बारे में जानकारी समाधि स्थल के सेवक, इतिहासकार और ग्रामीणों ने बताई. इस खबर की लोकल 18 पुष्टि नहीं करता है.