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यूपी में यहां हो रही अनोखी खेती, गंगा की रेत को खेत बनाकर कर रहे कमाई, नाव से बिकती हैं फसलें

सुबह के 7 बजे थे, गाजीपुर की गंगा किनारे  ठंडी हवा चल रही थी. पर हम जहां पहुंचे , वो जगह कोई आम खेत नहीं, बल्कि तपती रेत थी. वहां सर पर टोकरियों में ककड़ी-खीरा और नाशपाती लादे किसान, नाव से बाजार की ओर बढ़ रहे थे. ये सरैया गांव के लोग थे. इनकी ज़िंदगी, इनका संघर्ष और इनका खेत सब कुछ इस रेत पर बसा है.

गंगा का दो भागों में बंटना और दरिया के बीच जीवन

गाजीपुर में गंगा अब दो धाराओं में बंट चुकी है. एक धारा शहर की ओर, दूसरी सरैया गांव की तरफ और दोनों के बीच जो दरियाई ज़मीन है, वहीं पर ये खेती होती है. तेज़ हवाओं और तपती धूप के बीच इस रेत पर चलना मुश्किल था, लेकिन यहां के किसानों ने इसे हरियाली में बदल दिया है.

20 साल से रेत पर खेती कर रहे किसान की कहानी

हमारी मुलाकात होती है त्रिभुवन से, जो एक साधारण किसान हैं, पर असाधारण हौसले वाला. वह बताते हैं कि 20 साल से हम यहीं खेती कर रहे हैं. हमारे पास ज़मीन नहीं, ये रेत ही है. वो बताते हैं कि करीब 100 बीघा की खेती यहां की जाती है, जहां हर किसान ने भाईचारे से अपनी हिस्सेदारी तय कर ली है.

कमाई कम, मेहनत अधिक

यह किसान 100 सैकड़ा में ककड़ी बेचते हैं, लेकिन कई बार ₹400 भी नहीं मिलते तीन महीने की मेहनत में. आज ही ₹200 मिले हैं. त्रिभुवन की आवाज़ में थकान नहीं, तजुर्बा था. वो मंडी से बीज लाते हैं, खुद पानी निकालते हैं और सुबह 3 बजे से लेकर रात 7 बजे तक रेत में ही रहते हैं. वहीं खाना, वहीं झोपड़ी और वहीं ज़िंदगी.

गंगा के रिसाव से पानी एक गहरे गड्ढे में इकट्ठा होता है. जिसे ये तालाब या कुआं कहते हैं. वहां से 15 लीटर के डब्बों से पानी भरकर खेतों में डालते हैं. एक बीघे खेत में कम से कम 100 लीटर पानी रोज़ लगता है. हमारी टीम जब वहां पहुंची, तो एक महिला 10-10 लीटर के डब्बे दोनों हाथों में उठाकर पानी भर रही थी.

गंगा जब गुस्से में आती है

जब जलस्तर बढ़ जाता है, तो खेत भी डूब जाता है और उम्मीदें भी. त्रिभुवन बताते हैं कि कुंभ के समय जब गंगा में ज्यादा पानी छोड़ा गया, तो उनकी पूरी फसल बह गई. वो कहते हैं समय से बीज बो दिए, तो फायदा वरना घाटा ही घाटा.

नाव से बेचने ले जाते हैं फसल
हर सुबह 7 से 8 बजे के बीच नाव से ये किसान अपनी फसलें ददरी घाट मार्केट में ले जाते हैं. खीरा, ककड़ी, नाशपाती सबकुछ सैकड़ा के हिसाब से बिकता है. कुछ दिन अच्छी कमाई होती है, कुछ दिन खाली नाव लौटती है. लेकिन इन किसानों ने साबित कर दिया है कि अगर मेहनत हो, तो रेत में भी हरियाली उग सकती है.

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