100 लोग, एक आधार… लो भई UP में खुल गया बड़ा राशन घोटाला, जानें कैसे बच्चों से भी कनेक्शन

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UP News: उत्तर प्रदेश के बरेली, आगरा और मेरठ मंडलों में बहुचर्चित खाद्यान्न घोटाले की परतें अब खुलने लगी हैं. इस घोटाले की जांच कर रही सीआईडी ने सनसनीखेज खुलासे किए हैं. इसमें बताया है कि यह जालसाजी राशन डीलरों…और पढ़ें

यूपी में खाद्यान घोटाला.
हाइलाइट्स
- राशन घोटाले में 100 लोगों को एक आधार पर राशन मिला.
- सीआईडी ने कई अधिकारियों को घोटाले में जिम्मेदार ठहराया.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के बरेली, आगरा और मेरठ मंडलों में बहुचर्चित खाद्यान्न घोटाले की परतें अब तेजी से खुलने लगी हैं. इस मामले की जांच कर रही राज्य की क्राइम इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) ने अपनी जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. सीआईडी की रिपोर्ट के अनुसार, यह घोटाला राशन डीलरों से लेकर डीएसओ (जिला पूर्ति अधिकारी) और एडीएम (अपर जिला मजिस्ट्रेट) रैंक के अधिकारियों की मिलीभगत से अंजाम दिया गया.
रिपोर्ट में बताया गया है कि एक-एक आधार कार्ड पर 90 से 100 लोगों को राशन वितरित किया गया. यहां तक कि नाबालिग बच्चों को भी लाभार्थी बनाकर गरीबों के हक को हड़प लिया गया. सीआईडी ने मेरठ के तत्कालीन डीएसओ विकास गौतम सहित कई अधिकारियों और कर्मचारियों को जिम्मेदार मानते हुए विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है.
यह है मामला
यह घोटाला सबसे पहले वर्ष 2018 में सामने आया था, जिसमें कहा गया था कि 2015 से 2018 के बीच इन मंडलों में राशन वितरण में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुई हैं. इस मामले में अब तक 134 से अधिक मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. पहले जांच पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) को सौंपी गई थी, लेकिन पांच वर्षों तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. इसके बाद फरवरी 2024 में यह मामला सीआईडी को सौंपा गया, जिसने अब तक 110 मुकदमों का निस्तारण कर दिया है.
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सीआईडी की जांच में खुलासा हुआ है कि अधिकारियों ने राशन डीलरों से मिलकर आधार कार्ड के डाटा से छेड़छाड़ की. असली लाभार्थियों के आधार को एडिट कर अपात्रों को राशन जारी किया गया. चार्जशीट में कई पूर्ति निरीक्षक, सेल्समैन, ऑपरेटर और कोटेदार नामजद किए गए हैं.
इस घोटाले की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए राज्य सरकार अब एल-1 तकनीक लागू करने जा रही है. प्रमुख सचिव खाद्य एवं रसद रणवीर प्रसाद के अनुसार, एल-1 डिवाइस से अंगूठे की सटीक पहचान होगी और धोखाधड़ी की संभावना खत्म होगी. यह तकनीक 30 जून 2025 तक सभी ई-पॉश मशीनों में अनिवार्य रूप से इंस्टॉल कर दी जाएगी.