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संघ की तर्ज पर रणनीति, दलित वोटबैंक पर नजर… जानें क्या है रक्षामंत्री के छोटे बेटे नीरज की ‘साइलेंट पॉलिटिक्स’!

लखनऊ. 14 अप्रैल 2025 को भारत रत्न बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की 135वीं जयंती है. इससे एक दिन पहले, राजधानी लखनऊ में एक विशेष मैराथन का आयोजन किया जा रहा है. इस आयोजन का नाम रखा गया है- डॉक्टर आंबेडकर मैराथन. आयोजन के निवेदक हैं देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के छोटे बेटे नीरज सिंह. इस आयोजन के निहितार्थ क्या हैं. उससे पहले, चलिए एक दिलचस्प किस्सा जानते हैं.

गुपचुप तरीके से बनी रणनीति
तारीख थी 20 फरवरी 2025, स्थान- भागीदारी भवन, लखनऊ. यहां बिना किसी बड़े प्रचार-प्रसार के एक आयोजन होता है. नाम रखा गया, “सामाजिक न्याय संगोष्ठी”. लखनऊ के अंबेडकर पार्क से सटे भागीदारी भवन में यह कार्यक्रम बेहद गोपनीय तरीके से आयोजित किया गया. कार्यक्रम का उद्देश्य था- दलित वोट बैंक तक युवाओं के माध्यम से विश्वसनीय पहुंच बनाना और उसे मजबूत करना.

दलित युवाओं को साधने की कवायद
इस संगोष्ठी में लखनऊ विश्वविद्यालय और अन्य कई कॉलेजों के SC/ST छात्र और स्कॉलर आमंत्रित किए गए. कार्यक्रम का मूल लक्ष्य था- इन युवाओं को संगठन की ओर आकर्षित करना और उन्हें पार्टी के प्रचारक के रूप में तैयार करना. साथ ही, कार्यक्रम में संबंधित संस्थानों के प्रोफेसर भी शामिल हुए, ताकि विमर्श को अकादमिक और प्रामाणिक आधार भी मिल सके.

2024 के आरोपों की सफाई
कार्यक्रम में यूपी बीजेपी के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह विशेष रूप से मौजूद थे. साथ ही, बीजेपी के SC-ST मोर्चा अध्यक्ष भी वहां उपस्थित रहे. मायावती की जाटव बिरादरी से आने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी असीम अरुण भी कार्यक्रम में मौजूद थे. गौर करने वाली बात यह रही कि इस आयोजन का मंच किसी भी तरह से प्रचार का मंच नहीं बना. ना ही यहां आरएसएस और बीजेपी की पारंपरिक बातें की गईं. मंच से केवल विपक्ष को निशाने पर लिया गया, और युवाओं को संगठनात्मक प्रशिक्षण देने का स्पष्ट संकेत मिला था.

मंच से क्या संदेश गया?
असीम अरुण ने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा SC-ST वर्ग के लिए किए गए कार्यों को विस्तार से गिनाया था. वहीं, धर्मपाल सिंह कांग्रेस द्वारा बीजेपी और आरएसएस पर लगाए गए “दलित विरोधी” आरोपों का खंडन करते नजर आए थे. उन्होंने जोर देकर कहा था कि भाजपा ने अंबेडकर और दलित समाज के लिए कितने ठोस प्रयास किए हैं.

मैराथन के बहाने समीक्षा?
इस गोपनीय बैठक को दो महीने भी नहीं बीते, कि अब अंबेडकर जयंती पूर्व यह विशेष मैराथन आयोजित की जा रही है. इसे महज़ आयोजन नहीं, बल्कि रणनीति की निरंतर समीक्षा और सक्रियता बनाए रखने का प्रयास भी माना जा सकता है. इस कार्यक्रम का शुभारंभ भी पार्टी के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ही करने जा रहे हैं.

मायावती से छिटकते दलित वोटर
अगर आंकड़ों की बात करें तो दलित वोटरों के झुकाव में बदलाव स्पष्ट दिखता है. 2007 में बसपा को करीब 30% वोट मिले और पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. 2012 में यह प्रतिशत घटकर 26% रह गया और सीटें भी गिरकर 80 पर आ गईं. 2017 में पार्टी सिर्फ 22% वोट पाकर 19 सीटों पर सिमट गई. और 2022 तक आते-आते यह गिरकर 12% वोट और 1 सीट पर पहुंच गई.

उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों की संख्या लगभग 20–21 प्रतिशत है. यानी यह वो वर्ग है जिसे बसपा का कोर वोटर माना जाता रहा है. लेकिन अब यह वर्ग असमंजस में है और यही बात बीजेपी के लिए भी चिंता का विषय बन गई है.

2024 से सीख, 2027 की तैयारी
2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में विपक्षी महागठबंधन से खासा नुकसान हुआ. 29 सीटों का नुकसान सीधे तौर पर यही बताता है कि बीजेपी दलित वोटरों को साधने में चूक गई. अब जबकि विधानसभा चुनाव में दो साल बाकी हैं, बीजेपी कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती. और नीरज सिंह की भूमिका यहीं से खास हो जाती है.

नीरज सिंह की भूमिका
नीरज सिंह लगातार उन युवा छात्रों और स्कॉलर्स से संपर्क में हैं जो सोशल मीडिया पर पार्टी के प्रचारक और योद्धा की भूमिका निभा सकते हैं. अब आज की मैराथन की तस्वीरें बहुत कुछ कहने वाली हैं-
क्या वह रणनीति जो फरवरी में बनाई गई थी, उस पर काम हो रहा है?
क्या वे छात्र, स्कॉलर और प्रोफेसर आज मैराथन में दिखेंगे?
या फिर यह एक नया प्रयोग है?

इन तस्वीरों से यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि नीरज सिंह जिन युवाओं को प्रशिक्षित कर रहे हैं, वे कितने “काबू” में हैं और क्या वे आगामी चुनावों में एक मजबूत वोट बैंक के रूप में बदल सकते हैं. आज की तस्वीरें, दरअसल एक चुपचाप चल रही रणनीति की बयानी बन सकती हैं.

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