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Ramlal Yadav vs State of UP: ऐसा कौन-सा मामला पहुंचा इलाहाबाद हाईकोर्ट, जिसके लिए बैठेगी 9 जजों की बेंच, क्या है BNS की धारा 528

आखरी अपडेट:

Ramlal Yadav vs State of UP: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 के तहत एफआईआर रद्द करने के अधिकार पर विचार के लिए मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ को भेजा.

ऐसा कौन-सा मामला पहुंचा इलाहाबाद हाईकोर्ट, जिसके लिए बैठेगी 9 जजों की बेंच

इलाहाबाद हाईकोर्ट की नौ जजों की बेंच सुनवाई करेगी. (फाइल फोटो)

हाइलाइट्स

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 जजों की बेंच बनाई.
  • बीएनएनएस धारा 528 के तहत प्राथमिकी रद्द करने पर विचार.
  • रामलाल यादव मामले के निर्णय पर पुनर्विचार होगा.

प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार के लिए मामला नौ जजों की पीठ को भेज दिया है कि क्या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएनएस) की धारा 528 (पूर्व में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482) के तहत प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करके प्राथमिकी को रद्द किया जा सकता है.

इससे पूर्व, रामलाल यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (1989) के मामले में सात जजों की पीठ ने व्यवस्था दी थी कि एफआईआर रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अर्जी पोषणीय (सुनवाई योग्य) नहीं होगी और उचित उपचार यह होगा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर की जाए.

जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने सम्मानपूर्वक सात जजों की पीठ के निर्णय से असहमति जताते हुए इस मामले को नौ जजों की पीठ के सुपुर्द कर दिया. अदालत ने कहा कि हरियाणा सरकार बनाम भजनलाल (1990) और निहारिका इंफ्रा बनाम महाराष्ट्र सरकार (2021) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आलोक में सात जजों की पीठ का निर्णय अप्रचलित हो गया है.

अदालत ने कहा, “यह अदालत सम्मानपूर्वक इस बात को स्वीकार करती है कि रामलाल यादव के मामले में पूर्ण पीठ के निर्णय में स्थापित विधिक सिद्धांत, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के चलते अब लागू नहीं होते.” अदालत ने 27 मई को पारित 43 पेज के आदेश में कहा, “न्यायिक अनुशासन की भावना को देखते हुए यह अदालत इस मामले को नौ न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ के पास भेजने की इच्छुक है.”

हाईकोर्ट बीएनएसएस की धारा 528 के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें चित्रकूट की निचली अदालत के आदेश के चुनौती दी गई है. इस आदेश में पुलिस को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था. इन याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (उत्पीड़न), 323, 504, 506, 342 के तहत दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की भी मांग की है.

इस मामले में अपर शासकीय अधिवक्ता ने यह दलील देते हुए आपत्ति जताई कि रामलाल यादव के मामले में पूर्ण पीठ के निर्णय को देखते हुए प्राथमिकी रद्द करने के लिए मौजूदा याचिका पोषणीय नहीं है क्योंकि इसे संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत चुनौती दी जा सकती है.

अदालत ने कहा कि भजनलाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच के दौरान हाईकोर्ट के हस्तक्षेप का दायरा बढ़ा दिया था, इसलिए अदालत ने इस मामले को नौ जजों की पीठ के सुपुर्द करना उचित समझा. सुप्रीम कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात सरकार (2025) के मामले में कहा था कि कोई ऐसा ठोस नियम नहीं है जो एक हाईकोर्ट को बीएनएनएस की धारा 528 के तहत प्रदत्त अधिकार के तहत महज इसलिए प्राथमिकी रद्द करने से रोकता हो क्योंकि जांच प्रारंभिक चरण में है.

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Rakesh Ranjan Kumar

राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h…और पढ़ें

राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h… और पढ़ें

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