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लखीमपुर में अंग्रेज कलेक्टर की याद में बना विलोबी मेमोरियल हॉल, जानिए पूरा इतिहास

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लखीमपुर खीरी जिले का विलोबी मेमोरियल हॉल ऐतिहासिक धरोहर के रूप में यह आज भी स्थापित है. इसको 103 साल पहले कलेक्टर की हत्या के बाद उसकी याद में बनाया गया था. क्रांतिकारियों ने इसी जगह पर आजादी का जश्न मनाया था औ…और पढ़ें

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर शहर में आज भी विलोबी मेमोरियल हॉल ऐतिहासिक धरोहर के रूप में स्थापित है. विलोबी मेमोरियल हाल को करीब 103 साल पहले कलेक्टर की हत्या के बाद उसकी याद में बनाया गया था. क्रांतिकारियों ने इसी जगह पर आजादी का जश्न मनाया था और बाद में सजा होने पर इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए हंसी-खुशी फांसी के फंदे पर झूल गए थे.

अंग्रेज कलेक्टर आरडब्ल्यूडी बिलोबी 1918 से 1920 तक कलेक्टर के रूप में लखीमपुर खीरी में तैनात थे. बात उस समय की है, जब जिले में एक तरफ अहिंसात्मक आंदोलन चल रहा था तो दूसरी ओर से क्रांतिकारी सशक्त क्रांति के पक्षधर नजर आ रहे थे. जो अपने ढंग से अंग्रेजी हुकूमत को सबक सिखाने के प्रयास में लगे हुए थे. इसी क्रांति के परिणामस्वरूप क्रांति के तहत अंग्रेज कलेक्टर विलोबी की हत्या कर दी थीं.

विलोबी मेमोरियल हाल आज भी है यादगार

लखीमपुर जिले के वरिष्ठ पत्रकार एन.के. मिश्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि 26 अगस्त 1920 को नसीरुद्दीन मौजी अपने दो साथियों बसीरुद्दीन और माशूक अली के साथ अंग्रेज कलेक्टर विलोबी के आवास पर पहुंचे थे, जब विलोबी अपने कैंप कार्यालय में बैठा था. इसी दौरान क्रांतिकारियों ने ललकारने के बाद तलवार के दो वार करके विलोबी का काम तमाम कर दिया. इस घटना के बाद ब्रिटिश अंपायर इस घटना के बाद लखीमपुर से लेकर इंग्लैंड तक हल गई. इस घटना के बाद तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया. उसके बाद नसीमुद्दीन और उनके दो साथियों पर मुकदमा चला.नसीरुद्दीन मौजी से सफाई में गवाहों की सूची मांगी गई तो उन्होंने महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद और मौलाना शौकत अली का नाम दिया. अदालत ने इन गवाहों को तलब करने की इजाजत नहीं दी. मुकदमे की औपचारिकता पूरी करने के बाद इन तीनों को फांसी की सजा दी गई. इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए तीनों क्रांतिकारी सीतापुर जिला जेल में फांसी के फंदे पर झूल गए.

कलेक्टर आवास पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे नसीरुद्दीन उर्फमौजी
मोहल्ला थरवरनगंज निवासी नसीरुद्दीन उर्फ मौजी कलेक्टर आवास पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे. इस कारण उनका कलेक्टर आवास में बेरोकटोक आना जाना था। इससे उन्हें विलोबी की हत्या करने में आसानी हुई. उन्हें सीतापुर जेल में फांसी दी गई थी. आज भी जिले में उनके नाम से कोई प्रत्यक्ष रूप से कोई स्मारक नहीं है. नसीरुद्दीन के वंशज आज भी थरवरनगंज मोहल्ले में रहते हैं, जिन्हें वतन पर शहीद होने वाले अपने पुरखों पर गर्व है.

नसीरुद्दीन मौजी स्मारक भवन
नसीरुद्दीन की शहादत के बाद क्रांतिकारियों के नाम से कोई स्मारक बनाने के बजाय कलेक्टर के नाम से विलोबी मेमोरियल हॉल का निर्माण कराया. स्वर्ण जयंती के मौके पर जिला प्रशासन ने मेमोरियल हॉल का नाम बदलकर नसीरुद्दीन मौजी स्मारक भवन कर दिया. मौजूदा समय में यही भवन नसरुद्दीन मौजी का स्मारक है. अभी तक इस भवन को संवैधानिक रूप से नसरुद्दीन मौजी मेमोरियल हॉल का दर्जा नहीं मिला है. आज इस भवन में ब्रिटिश समकालीन चीजें मौजूद हैं. ऐतिहासिक लाइब्रेरी भी स्थापित है.

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