यूपी पंचायत चुनाव से पहले क्या राहुल गांधी कर रहे मायावती वाली गलती? सपा से रिश्ते में दरार क्यों.. समझे पूरी कहानी

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Lucknow News : कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे ने अजय राय के बयान की पुष्टि की और कहा कि पार्टी सभी 403 सीटों पर मजबूती से खड़ी है. ऐसे में सपा के साथ गठबंधन में दरार साफ दिखने लगी है. राजनीति के जान…और पढ़ें

गौरतलब है कि कांग्रेस के लिए साल 2024 उम्मीद भरा रहा था. 2014 के बाद मोदी लहर के चलते कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक नुकसान का सामना करना पड़ा था. कभी यूपी की राजनीति में सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस 1985 के बाद हाशिए पर थी. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सपा से गठबंधन के बाद 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारा था. इन 17 में से 6 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी, जबकि सपा ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधन में सबकुछ सही नहीं चल रहा.
यूपी के विधानसभा चुनाव में अभी काफी वक्त बाकी है. लेकिन बीते कुछ दिनों में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने ऐसे बयान दिए हैं, जिससे सपा-कांग्रेस के गठबंधन पर सवाल उठने लगे हैं. कांग्रेस ने पंचायत चुनाव में अपना दमख़म दिखाने का फैसला कर लिया है. यूपी विधानसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनाव को नेट प्रैक्टिस माना जा रहा है. जहां 10 सालों के बनवास के बाद सपा भी सत्ता में वापसी की आस में है, वहीं कांग्रेस को भी लग रहा है कि उसके यूपी में अच्छे दिन आने वाले हैं. इसीलिए कांग्रेस अब अखिलेश यादव से अपनी शर्तों पर गठबंधन करना चाहती है. इसी कड़ी में पार्टी के सांसद इमरान मसूद, अजय राय और अविनाश पांडे माहौल बनाने में जुट गए हैं. वे लगातार कह रहे हैं कि यूपी में कांग्रेस को किसी बैशाखी की ज़रूरत नहीं है.
क्या कांग्रेस कर रही बीएसपी वाली गलती?
सपा और बीएसपी की यूपी में दुश्मनी पुरानी है, जो 2 जून, 1995 को गेस्ट हाउस कांड के बाद शुरू हुई थी. लेकिन मोदी लहर में दोनों पार्टियों ने अपना वजूद बचाने के लिए 24 साल बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया. कारण था बीएसपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य सीट मिली थी, वहीं सपा को 5. लेकिन प्रचंड मोदी लहर में भी बुआ और बबुआ का गठबंधन रंग लाया और सपा-बीएसपी ने 15 सीटों पर कब्जा किया. हालांकि सपा को फायदा कम हुआ था, वहीं बीएसपी ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन टूट गया और बीएसपी को मात्र 1 सीट मिली, वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई.
घातक हो सकता है कांग्रेस का आत्मघाती कदम
दूसरी तरफ कांग्रेस की बात करें तो सपा से गठबंधन के बावजूद यूपी में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही थी. 1985 के विधानसभा चुनाव में 269 सीट जीतने वाली पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 2 सीटों से संतोष करना पड़ा, वहीं विधान परिषद में पार्टी का कोई नेता नहीं है. हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 6 सीटों पर कब्जा किया था. लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि कांग्रेस का रायबरेली और अमेठी के अलावा कोई संगठन नहीं है. वहीं प्रयागराज की सीट पर जीते उज्ज्वल रमन सिंह सपा के नेता थे, जो कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़े थे. वहीं इमरान मसूद की जीत बीजेपी की एक गलती का नतीजा थी. ऐसे में कांग्रेस की हद से अधिक महत्वाकांक्षा पार्टी के लिए घातक साबित हो सकती है.