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मेरठ की धरोहर है यह धार्मिक एवं क्रांति स्थल, रामायण से लेकर कलयुग तक नाता, देखें Photos

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मेरठ से 45 किलोमीटर दूर हस्तिनापुर महाभारत कालीन धरती के तौर पर जाना जाता है. यहां पर आपको पांडेश्वर मंदिर देखने को मिलेगा. इसके बारे में कहा जाता है कि यहां पर पांचो पांडव विधि विधान के साथ भोले बाबा की पूजा अ…और पढ़ें

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मेरठ से 45 किलोमीटर दूर हस्तिनापुर महाभारत कालीन धरती के तौर पर जाना जाता है. यहां पर आपको पांडेश्वर मंदिर देखने को मिलेगा. इसके बारे में कहा जाता है कि यहां पर पांचो पांडव विधि विधान के साथ भोले बाबा की पूजा अर्चना किया करते थे. मंदिर में पांचो पांडव की मूर्ति भी स्थापित है.  इसके अंदर कुआं भी बना हुआ है. जिसके बारे में कहा जाता है कि इससे स्नान कर चर्म रोग से संबंधित विभिन्न समस्याओं का समाधान होता है. इसके आसपास आपको मिट्टी के बड़े-बड़े टीले भी देखने को मिलेंगे.

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इसी तरह से महाभारत कालीन युग में महाराज कर्ण का अभी उल्लेख सुनने को मिलता है. उनके नाम से हस्तिनापुर में मंदिर भी बना हुआ है. यहां पर विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. महाराज कर्ण भी यहां प्रतिदिन अपनी कुलदेवी की पूजा अर्चना करते थे. जिससे उन्हें जो उपहार में सवा मन सोना मिलता था. जिसे वह अपनी जनता में दान कर देते थे.

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महाभारत कालीन ऐतिहासिक तथ्यों की अगर बात की जाए तो उसमें द्रौपदी के चीरहरण का उल्लेख भी मिलता है. ऐसे में आप अगर द्रौपदी घाट की तरफ जाएंगे. जहां से बूढ़ी गंगा होकर गुजरती है. वहीं द्रौपदी का मंदिर बना हुआ है. यहां पर हजारों साल से एक मूर्ति स्थापित है. जो चीरहरण की दास्तान को बयां करती है. इसमें एक तरफ जहां द्रौपदी का चीर हरण दिखाया गया है. वही भगवान श्री कृष्णा उनकी लाज बचाते हुए दिखाई दे रहे हैं. हस्तिनापुर एक्सपर्ट प्रियंक भारती के अनुसार यह एक मूर्ति महाभारत के पूरे घटना को जीवित करते हुए भी दिखाई देती है.

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मेरठ को क्रांति धरा के तौर पर भी जाना जाता है. ऐसे में मेरठ कैंट में बाबा औघड़नाथ मंदिर स्थापित है. जिसके बारे में उल्लेख मिलता है की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का आगाज इसी मंदिर से हुआ था. यहां आज भी वह कुआं मौजूद है. जिसके बारे में कहा जाता है कि प्रतिदिन साधु यहीं पर ही भारतीय सैनिकों को कुएं से पानी पिलाते हुए कारतूस में सूअर की चर्बी का उल्लेख करते थे. जिसके बाद सैनिकों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. आज यह आस्था का विशेष केंद्र बना हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित विभिन्न मंत्री, राजनेता भी बाबा औघड़नाथ के दर्शन कर क्रांतिकारियों को नमन कर चुके हैं. शिवरात्रि, महाशिवरात्रि को यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश भर से पहुंचते हैं.

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मेरठ कैंट में ही बाबा बिलेश्वर नाथ मंदिर हजारों साल से मौजूद है. मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी. वह प्रतिदिन यही पर भोले बाबा की पूजा अर्चना किया करती थी. जिसके फल स्वरुप उसे वरदान में भोले बाबा ने रावण जैसा विद्वान पति दिया था. आज भी इस मंदिर के प्रति भक्तों की काफी आस्था रहती है. देश भर से श्रद्धालु यहां अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं.

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मेरठ से लगभग 40 किलोमीटर दूर ही ऐतिहासिक सरधना की कैथोलिक चर्च में मौजूद है. जिसका इतिहास भी 200 से अधिक साल पुराना बताया जाता है. यह चर्च काफी खूबसूरत है. जिस तरह से ताजमहल में संगमरमर एवं अन्य प्रकार के पत्थरों का उपयोग किया गया है. इस तरह से भव्यता आपको इस चर्च में देखने को मिलेगी. इसका निर्माण बेगम समरू द्वारा कराया गया था. इसे काफी चमत्कारी चर्च भी माना जाता है.

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मेरठ में वर्तमान समय में सूरजकुंड पार्क में लोग सुबह-शाम घूमने के लिए आते हैं. लेकिन इस पार्क का भी अपने आप में ऐतिहासिक धार्मिक उल्लेख माना जाता है. इतिहासकार प्रोफेसर नवीन गुप्ता बताते हैं कि इस पार्क में 1857 से पहले साधुओं के टीले हुआ करते थे. यही से क्रांति को लेकर विभिन्न कार्य किए जाते थे. जिसमें एक बाबा का उल्लेख मिलता है. अंग्रेजी हुकूमत द्वारा उन्हें यहां से शहर छोड़ने का आदेश जारी कर दिया था. माना जाता है कि वहीं बाबा यहां से औघड़नाथ मंदिर में पहुंचे थे.

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मेरठ से ही 30 किलोमीटर दूर किला परीक्षितगढ़ मौजूद है. जिसे राजा परीक्षित का क्षेत्र माना जाता है. यहीं पर ही श्री श्रृंगी ऋषि आश्रम मौजूद है .विभिन्न धार्मिक ग्रंथो में उल्लेख है कि कलयुग की शुरुआत का मुख्य केंद्र भी यही आश्रम है. जब राजा परीक्षित के सिर पर कलयुग सवार हुआ था. ऐसे में यहां भी देश भर से लोग घूमने के लिए पहुंचते हैं. बताते चले मेरठ में ऐसे ही विभिन्न प्रकार की आपको ऐतिहासिक और पौराणिक धरोहर स्थल देखने को मिलेंगे. जिनका अपने आप में ऐतिहासिक उल्लेख मिलता है.

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मेरठ की धरोहर है यह धार्मिक एवं क्रांति स्थल, रामायण से लेकर कलयुग तक नाता

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