देवरिया के बरहज में मौजूद है शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की समाधि, क्यों आजादी के बाद लोगों को हुई इसकी जानकारी

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देवरिया जहां क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की गुप्त समाधि स्थित है. बरहज नगर के नंदना वार्ड पश्चिम में स्थित यह समाधि आज भी परमहंस आश्रम में सादगी से बनी हुई है. आपको बता दें पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का…और पढ़ें

राम प्रसाद बिस्मिल की समाधि
हाइलाइट्स
- राम प्रसाद बिस्मिल की समाधि बरहज में स्थित है
- समाधि परमहंस आश्रम में सादगी से बनी हुई है
- हर साल 19 दिसंबर को श्रद्धालु बिस्मिल को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं
देवरिया:- बरहज कस्बे में स्थित परमहंस आश्रम (अनंतपीठ), जिसे आमतौर पर धार्मिक आस्था का केंद्र माना जाता है, दरअसल भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक अनकही गाथा को भी अपने भीतर छुपाए है. यही वह स्थान है जहां क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की गुप्त समाधि स्थित है, वह भी दशकों तक लोगों की जानकारी से बाहर रही.
गोरखपुर जेल में दी गई थी फांसी
अनंतपीठ के वर्तमान महंत श्री आञ्जनेय दस महाराज ने बताया, कि पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का नाम काकोरी कांड से जुड़ा है. 9 अगस्त 1925 को ब्रिटिश खजाने को लूटने की इस ऐतिहासिक योजना ने ब्रिटिश शासन की जड़ों को हिला दिया था. बिस्मिल को गिरफ्तार किया गया और लंबे मुकदमे के बाद 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गई. इतिहास के पन्नों में दर्ज एक अहम घटना के अनुसार, उसी शाम बाबा राघव दास ने राप्ती नदी के तट पर बिस्मिल का अंतिम संस्कार किया. अगले ही दिन, 20 दिसंबर को वे उनकी पार्थिव अस्थियां लेकर बरहज लौटे, लेकिन अंग्रेजों के खौफ के चलते इस समाधि को गुप्त रखा गया और आज़ादी के बाद ही यह जानकारी सार्वजनिक रूप से सामने आई.
परमहंस आश्रम में बनी है समाधि
बरहज नगर के नंदना वार्ड पश्चिम में स्थित यह समाधि आज भी परमहंस आश्रम में सादगी से बनी हुई है. हर साल 19 दिसंबर को, देशभर से स्वतंत्रता संग्राम के अनुयायी और स्थानीय श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं, बिस्मिल को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत वातावरण में लीन हो जाते हैं. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल न सिर्फ क्रांति के अग्रदूत थे, बल्कि ओजपूर्ण कवि भी थे. उनकी लिखी पंक्तियां “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” आज भी युवाओं में क्रांति का जोश भर देती हैं.
राष्ट्रीय स्मारक का दिया जाए दर्जा
इतिहासकारों का कहना है कि चौरी-चौरा कांड (4 फरवरी 1922) और काकोरी कांड (9 अगस्त 1925) के बीच की अवधि में बिस्मिल की जेल में बाबा राघव दास से भेंट हुई थी. यह मुलाकात दो धाराओं सशस्त्र क्रांति और अहिंसक आंदोलन के बीच वैचारिक संवाद का प्रतीक बनी. आज यह समाधि बरहज ही नहीं, बल्कि पूरे पूर्वांचल के लिए गौरव का प्रतीक बन चुकी है. इतिहासप्रेमियों और स्थानीय लोगों की मांग है कि इस स्थल को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिया जाए, जिससे युवा पीढ़ी को बिस्मिल के बलिदान की जानकारी मिल सके और यह धरोहर सहेजी जा सके.