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तोपों की बारिश, टूटता पुल और बगावत की चिंगारी! गोलाघाट की कहानी आपको चौंका देगी!

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1857 की क्रांति के दौरान सुल्तानपुर में गोमती नदी पर बने लकड़ी के पुल को अंग्रेजों ने तोप से उड़ा दिया था. इसी कारण इस ऐतिहासिक स्थान को ‘गोलाघाट’ कहा जाता है, जो आज भी वीरता की कहानी कहता है.

सुल्तानपुर- 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लहरों के बीच सुल्तानपुर शहर के उत्तरी छोर पर गोमती नदी पर बना एक काष्ठ का पुल अंग्रेज‑सैनिकों के लिए खलल पैदा कर रहा था. स्थानीय विद्रोही चाहते थे कि अंग्रेजी फौज इस पार न आ पाए, लेकिन अंग्रेजों ने तोपों से गोलाबारी कर पुल को ध्वस्त कर दिया.

इन तोप के गोलों की गूंज और पुल के ध्वस्त होने की घटना ने इस स्थल का नाम ही बदल दिया. तभी से इस स्थान को ‘गोलाघाट’ कहा जाने लगा जहां अंग्रेजी गोलों ने तरणताल पर दस्तक दी थी. यह नाम आज भी उन वीर क्षणों की स्मृति जगाए रखता है.

कुछ लोग मानते हैं कि अंग्रेजों ने पुल को तोड़ा, ताकि विद्रोहियों की आड़ में ट्रेन या राट्टा फौज न आ सके. वहीं दूसरी कथा के अनुसार, बागी सैनिकों ने स्वयं पुल को नष्ट किया, ताकि अंग्रेजी फौज सुल्तानपुर की ओर न बढ़ सके. वरिष्ठ पत्रकार कपूर चंद्र अग्रवाल ने भी अपनी हैंडबुक में इन दोनों दृश्यों का उल्लेख किया है, पर प्रमाणों की कमी के चलते वास्तविकता पर हमेशा कुछ सवाल बने रहे.

पुल के विनाश के बाद स्थान पर लोहे का एक नया पुल बनाया गया, जिसने दशकों तक यात्रियों को गोमती नदी पार करने में सुविधा दी. हालाँकि, अब वह पुराने मानकों पर खरा नहीं उतरता और सुरक्षा कारणों से स्थानीय प्रशासन ने उसे आवागमन के लिए बंद कर दिया है.

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तोपों की बारिश, टूटता पुल और बगावत की चिंगारी! बड़ी गजब है गोलाघाट की कहानी

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