चित्रकूट में आज भी यहां मौजूद है तुलसी दास जी के हाथ से लिखा रामचरितमानस, दर्शन के लिए लगती है भक्तों की भीड़

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Chitrakoot News: यूपी में चित्रकूट के राजापुर गांव में गोस्वामी तुलसीदास की हस्तलिखित रामचरितमानस सुरक्षित है. भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं. तुलसीदास ने इसे 966 दिनों में रचा था.

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हाइलाइट्स
- चित्रकूट के राजापुर गांव में तुलसीदास की हस्तलिखित रामचरितमानस सुरक्षित है.
- भक्त तुलसीदास की रामचरितमानस के दर्शन के लिए राजापुर आते हैं.
- तुलसीदास ने 966 दिनों में रामचरितमानस की रचना की थी.
चित्रकूट: रामचरितमानस ऐसा महाकाव्य है, जिसने भगवान श्रीराम को हर घर तक पहुंचाया है. और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह ग्रंथ न केवल साहित्यिक दृष्टि से अनुपम है. बल्कि भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक भी है. गोस्वामी तुलसीदासजी ने इसे 966 दिनों में रचा और इसके लिए उन्होंने अयोध्या से लेकर काशी तक, उन तमाम स्थानों का भ्रमण किया. जहां श्रीराम से जुड़े साक्ष्य मौजूद थे. ऐसे में आज भी इस कालजयी रचना की हस्तलिखित प्रति यूपी के चित्रकूट जिले के राजापुर गांव में सुरक्षित रखी गई हैं.
रामचरित मानस के दर्शन के लिए आते हैं भक्त
बता दें कि चित्रकूट भगवान श्री राम की तपोस्थली के राजापुर गांव में आज भी गोस्वामी तुलसीदास की हस्तलिखित रामचरितमानस सहेज कर रखी गई है. श्रद्धालु यहां गोस्वामी तुलसीदास की हस्तलिखित रामचरित मानस को देखने और पढ़ने के लिए आते है. साथ ही रामचरितमानस का दर्शन भी करते हैं.
तुलसी दास जी ने लिखी थी रामचरितमानस
तुलसीदास की रामचरितमानस अभी भी उनके पैतृक गांव चित्रकूट जिले के राजापुर में मौजूद है. गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा खुद से लिखी गई सैकड़ों साल पुरानी कृति आज भी सुरक्षित रखी हुई है. मंदिर के संत शरद कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि इस महाकाव्य का निर्माण 76 साल की उम्र में तुलसीदासजी ने किया था. अब केवल अयोध्या कांड बचा है. बाकी सब विलुप्त हो गए, लेकिन ये जो आप लिखावट देख रहे हैं. ये तुलसीदासजी के हाथों से लिखी गई है.
वहीं, रामचरितमानस के सेवक रामाश्रय ने बताया कि तुलसीदासजी की हस्तलिखित रामकथा अब पढ़ने की समझ रखने वाले बस वे एक शख्स हैं. रामाश्रय तुलसीदास के शिष्य की 11वीं पीढ़ी के हैं. पिछले 500 साल से इनका परिवार इस महाग्रंथ की सेवा कर रहा है. असल में रामाश्रय कहते हैं कि हिंदी लिखने में पिछले 50 सालों में 6 अक्षर बदल गए तो सोचिए कि 500 साल में हिंदी के अक्षरों में कितना बदलाव आया होगा.