गांवों में खुलेगा डिजिटल ज्ञान का खजाना, 346 पंचायतों में बनेगी मुफ्त लाइब्रेरी

जिला पंचायत राज विभाग द्वारा संचालित इस योजना की शुरुआत प्रथम चरण में हो रही है, जिसके अंतर्गत 13.84 करोड़ रुपये की लागत से 346 गांवों में डिजिटल लाइब्रेरी तैयार की जाएंगी. प्रत्येक लाइब्रेरी पर करीब चार लाख रुपये का खर्च आएगा. जिले की 1734 ग्राम पंचायतों में से पहले चरण में 346 का चयन किया गया है. यहां कंप्यूटर, लैपटॉप, प्रिंटर, इंटरनेट कनेक्शन, फर्नीचर और शिक्षण सामग्री की व्यवस्था की जाएगी.
इस लाइब्रेरी का लाभ छात्र-छात्राएं ही नहीं, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे बेरोजगार युवक-युवतियां और बुजुर्ग भी उठा सकेंगे. यहां बच्चों के लिए चित्र पुस्तकों, बाल साहित्य और इंटरएक्टिव ऐप्स की सुविधा होगी, तो वहीं युवाओं के लिए उच्च स्तरीय प्रतियोगी पुस्तकों, ई-पेपर, शोध सामग्री और डिजिटल टूल्स की सुविधा दी जाएगी. बुजुर्गों के लिए धर्मग्रंथ, समाचार पत्र और ऑडियो बुक्स की व्यवस्था होगी.
शहरी खर्च से मुक्ति मिलेगी
ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल लाइब्रेरी खुलने से छात्रों के माता-पिता को आर्थिक राहत मिलेगी. शहरी इलाकों में डिजिटल पढ़ाई के लिए हर माह 500 से 1000 रुपये तक खर्च करना पड़ता है. वहीं यहां मिलने वाली सुविधा बिल्कुल मुफ्त होगी. महंगी किताबें, प्रोजेक्टर, इंटरनेट जैसी सारी सुविधाएं अब गांवों में भी आसानी से उपलब्ध होंगी.
पहले चरण में इन क्षेत्रों को मिला लाभ
इस योजना के पहले चरण में शाहगंज ब्लॉक के 113 गांवों में डिजिटल लाइब्रेरी बनाई जाएगी. इसके अलावा बरसठी में 76, मुंगराबादशाहपुर में 32, सुइथाकला में 24, रामपुर में 20, धर्मापुर में 16, बदलापुर में 10, जलालपुर में 12, सिकरारा में नौ, मडियाहूं में छह, खुटहन और बक्शा में चार-चार, रामनगर में दो, जबकि केराकत और करंजाकला में एक-एक गांव का चयन हुआ है.
जिला पंचायत राज अधिकारी नवीन सिंह ने बताया कि पहले चरण में चयनित गांवों में डिजिटल लाइब्रेरी स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. जमीन की पहचान कर ली गई है और जैसे ही शासन से बजट जारी होगा, निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा. यह पहल ग्रामीण भारत को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम साबित होगी.
इस योजना से गांव के विद्यार्थियों को न केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अवसर मिलेगा, बल्कि डिजिटल साधनों का प्रयोग कर वे राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो सकेंगे. यह पहल ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा देने वाली साबित हो सकती है.