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कम खर्च और मुनाफा तगड़ा! बलिया के किसान अब मोटे अनाज से बदल रहे अपनी किस्मत, जानें कैसे करें खेती?

बलिया: सावन का महीना हो और धान की बात न हो, ऐसा तो हो नहीं सकता. लेकिन आज हम आपको धान से अलग एक ऐसे अनाज की खेती के बारे में बता रहे हैं, जिससे किसान कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. ये अनाज हैं, कंगनी (टांगुन), मड़ुआ, कोदो, रागी और सांवा. छोटे दिखने वाले ये मोटे अनाज सेहत के लिए फायदेमंद हैं. साथ ही अब किसानों की आमदनी बढ़ाने का भी बड़ा जरिया बनते जा रहे हैं.

सरकार भी अब इन अनाजों की खेती को बढ़ावा दे रही है. वजह है कि इसकी खेती में न तो ज्यादा पानी की जरूरत होती है, न ही ज्यादा खाद और न ही रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग होता है. ऊपर से ये पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचाते. यानि खेती भी करें, मुनाफा भी कमाएं और प्रकृति का ख्याल भी रखें.

कृषि विशेषज्ञ भी दे रहे सलाह

बलिया के श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार सिंह बताते हैं कि ये अनाज किसानों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि कम उपजाऊ जमीन और कम लागत में ये फसलें तैयार की जा सकती हैं. यह एक सुनहरा मौका है, जब किसान पारंपरिक खेती से हटकर मोटे अनाज की तरफ जाएं.

टांगुन (कंगनी) की खेती
इसकी फसल सिर्फ 60 से 90 दिन में तैयार हो जाती है. एक बीघा खेत में सिर्फ सवा किलो बीज ही काफी होता है. इसमें रोग भी बहुत कम लगते हैं, जिससे फसल खराब होने का खतरा भी कम रहता है.

मड़ुआ की खेती

मड़ुआ के लिए 5 किलो बीज प्रति एकड़ काफी होता है. इसकी फसल 80 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है. इसकी बुवाई मानसून की शुरुआत में लाइन से करना जरूरी होता है.

कोदो की खेती
कोदो की बुवाई के लिए खेत में नमी जरूरी है. इसकी फसल 65 से 100 दिन में तैयार होती है. छिटकवां विधि से इसकी बुवाई करना ज्यादा फायदेमंद रहता है.

रागी की खेती

रागी और मड़ुआ को आमतौर पर एक जैसा समझा जाता है, लेकिन इनके पौधे अलग होते हैं. रागी का गुच्छा सीधा होता है जबकि मड़ुआ का मुड़ा हुआ. एक बीघा में सवा से डेढ़ किलो बीज पर्याप्त होता है. रागी की मांग बाजार में ज्यादा है और इसकी खीर तक फाइव स्टार होटलों में परोसी जाती है. इसकी फसल 85 से 110 दिन में तैयार हो जाती है.

सांवा की खेती
सांवा की फसल भी 60 से 100 दिनों में पक जाती है. इसकी बुवाई जून-जुलाई में होती है और कटाई सितंबर-अक्टूबर में. यह अनाज भी सेहत के लिए बेहद लाभकारी है.

ये खेती किसानों के लिए है फायदेमंद
कम लागत, कम सिंचाई, कम उर्वरक और अच्छी आमदनी, इन चारों बातों को ध्यान में रखें तो ये मोटे अनाज हर लिहाज से फायदे का सौदा हैं. प्रो. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि अगर किसान इसे अपनाते हैं तो आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम माना जाएगा.

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