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कद्दू दे रहा मशरूम को टक्कर, इसकी खेती का जवाब नहीं, बारिश में बरस रहे किसानों पर नोट

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Kaddu cultivation tips : इसकी फसल किसानों के लिए दोहरा लाभ देती है. कम मेहनत में अधिक उत्पादन होता है. हाथोंहाथ बिकती है. हर घर में खपत है. हमेशा डिमांड रहती है. बारिश के दिनों में लोग खूब खाते हैं.
बाराबंकी. किसानों के लिए सब्जी की खेती हमेशा से फायदे का सौदा रही है. कद्दू की खेती इन्हीं में से एक है. कद्दू की फसल कम समय और कम मेहनत में अधिक उत्पादन देने के लिए जानी जाती है. बाजार में कद्दू की सब्जी के साथ-साथ इसके बीजों की भी अच्छी मांग रहती है. किसान भी अब ऐसी ही फसलों का रुख कर रहे हैं, जो कम समय में बेहतर मुनाफा दे. कद्दू की खेती में लागत कम आती है. इसकी देखभाल भी आसान है. एक बार बुवाई के बाद नियमित सिंचाई और उचित देखभाल से अच्छी पैदावार ली जा सकती है. कद्दू की फसल किसानों के लिए दोहरा लाभ देती है. इसकी सब्जी बाजार में अच्छे दामों पर बिकती है. इसके बीज भी अच्छी कीमत पर बेचे जा सकते हैं. इस तरह किसान एक ही फसल से दो तरह की आमदनी कर सकते हैं.
पांच साल से बो रहे कद्दू
बाराबंकी के युवा किसान अभय सिंह लोकल 18 से कहते हैं कि देसी कद्दू की खेती कर उन्हें लागत के हिसाब से अच्छा मुनाफा मिल रहा है. वे कई सालों से इसकी खेती कर रहे हैं. अभय बाराबंकी जिले के दरामनगर गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने पहले दूसरी फसलों के साथ-साथ देसी कद्दू की खेती शुरू की. इसमें उन्हें अच्छा फायदा देखने को मिला. आज वे करीब पांच बीघा में देसी कद्दू उगा रहे हैं. एक फसल पर एक से डेढ़ लाख रुपये मुनाफा हो जाता है. लागत एक बीघे में ढाई से तीन हजार रुपये है. बरसात के सीजन में यह काफी महंगा बिकता है क्योंकि इसकी खेती बहुत ही कम किसान करते हैं.
ये रहा खेती का तरीका
किसान अभय बताते हैं कि इसकी खेती करना बहुत ही आसान है. पहले खेत की दो-से तीन बार गहरी जुताई की जाती है. फिर खेत में मेड बनाकर तीन-तीन फीट की दूरी पर कद्दू के बीजों की बुवाई की जाती है. पौधा निकलने के 15 से 20 दिन बाद इसकी सिंचाई करनी होती है. बुवाई के 45 से 50 दिन बाद फल निकलना शुरू हो जाते हैं, जिसे तोड़कर बाजारों में बेच सकते हैं.