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ऐतिहासिक हनुमानगंज कोठी, चित्तू पांडेय की घोषणा से लेकर अंग्रेजों की लूट तक की दास्तान, आज उपेक्षा की शिकार

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प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने कहा कि सन 19 अगस्त 1942 को बलिया में आज़ादी की अलख जगाई गई थी. इस दौरान चित्तू पांडेय को अंग्रेजी हुकूमत के दबाव में रिहा कर दिया गया था. 20 अगस्त को इस कोठी में …और पढ़ें

आज हम आपको उस ऐतिहासिक हनुमानगंज कोठी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास काफी रोचक और लंबा चौड़ा है. यह कोठी स्वतंत्रता संग्राम के दौर की एक अहम धरोहर रही है. यह कोठी उस समय न केवल एक आलीशान अनोखी भवन थी, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए एक आर्थिक सहयोग केंद्र, यानी एक तरह से कहे, तो क्रांतिकारियों का बैंक था. इसकी स्थापना उस समय के सबसे संपन्न और प्रभावशाली व्यक्ति स्व. बाबू महादेव प्रसाद ने की थी. उन्होंने आजादी के दीवानों को आर्थिक और रणनीतिक समर्थन देने के लिए इस कोठी का निर्माण कराया था.

प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने कहा कि सन 19 अगस्त 1942 को बलिया में आज़ादी की अलख जगाई गई थी. इस दौरान चित्तू पांडेय को अंग्रेजी हुकूमत के दबाव में रिहा कर दिया गया था. 20 अगस्त को इस कोठी में एक ऐतिहासिक बैठक की घोषणा की गई थी. इसमें चित्तू पांडेय और बाबू राधा मोहन सिंह सहित कई क्रांतिकारी नेताओं ने भाग लिया था. इसी बैठक में चित्तू पांडेय को जनता द्वारा निर्वाचित कलेक्टर घोषित किया गया था. हालांकि, अंग्रेज कलेक्टर जेएस निगम इस बैठक में शामिल नहीं हुए और इसका खामियाजा हनुमानगंज कोठी को भुगतना पड़ा, जब रात में ब्रिटिश फौज ने अचानक धावा बोल दिया.

नेदर शोल के नेतृत्व में ब्रिटिश फौज ने बलिया

22/23 अगस्त की रात नेदर शोल के नेतृत्व में ब्रिटिश फौज ने बलिया पर पुनः कब्जा किया. सबसे पहले तो हनुमानगंज कोठी को निशाना बनाया. उसके बाद अंग्रेजों ने कोठी से सोना, चांदी, नकद धन और जेवरात लूट कर 25 बैलगाड़ियों में भरकर अपने साथ लेकर चले गए. यह कोठी क्रांतिकारियों का बड़ा आधार था, इसीलिए इसे योजनाबद्ध तरीके से अंग्रेजों ने लूट लिया था.

ऐतिहासिक धरोहर हनुमानगंज कोठी
मोहनीश गुप्ता ने कहा कि इस कोठी के ठीक सामने एक ऐतिहासिक कुआं भी सामुदायिक जीवन का बड़ा केंद्र था. पूरे गांव में होने वाले मांगलिक कार्यक्रमों में इसी कुएं में चीनी की बोरियां डालकर रस बनाया जाता था, जो बारातियों और ग्रामीणों को शरबत के रूप में परोसा जाता था. वैसे आज यह ऐतिहासिक धरोहर हनुमानगंज कोठी खुद की स्थिति पर आंसू बहाने को मजबूर हुई है. इतिहास की यह अमूल्य धरोहर अब उपेक्षा का शिकार हो रही है.

कोठी आज जर्जर अवस्था में
कभी स्वतंत्रता आंदोलन की शान रही यह कोठी आज जर्जर अवस्था में है. दीवारों की ईंटें गिर रही हैं, परिसर में झाड़ियाँ उग आई हैं और संरक्षण के नाम पर कुछ भी ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. आज ज़रूरत है कि हनुमानगंज कोठी को सिर्फ एक पुरानी इमारत नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की गवाही देने वाली ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विकसित करने की, ताकि युवा अपनी विरासत से रूबरू होते रहे.

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हनुमानगंज कोठी, स्वतंत्रता संग्राम की ऐतिहासिक धरोहर, आज उपेक्षा की शिकार

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