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एक स्तम्भ, हजारों कहानियां, एएमयू का यह खजाना देख दुनिया रह गई दंग!

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एएमयू के मूसा डाकरी संग्रहालय में स्थित 9वीं शताब्दी का वकत्र स्तम्भ महावीर स्वामी की मूर्ति को दर्शाता है. यह स्तम्भ न केवल शिल्पकला का उदाहरण है, बल्कि सर सैयद की ऐतिहासिक विरासत और दृष्टिकोण का प्रतीक भी है.

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यूपी के इस शहर में है 9वीं ईस्वी का स्वामी महावीर का स्तूप

वसीम अहमद /अलीगढ़- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) का मूसा डाकरी संग्रहालय एक अनोखे और दुर्लभ ऐतिहासिक स्तम्भ की वजह से इन दिनों चर्चा में है. यह स्तम्भ 9वीं शताब्दी के महावीर स्वामी को समर्पित है, जो अपनी उत्कृष्ट कारीगरी और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण इतिहास प्रेमियों और पुरातत्व के विद्यार्थियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है.

चारों दिशाओं से सममित सौंदर्य
यह स्तम्भ 1.59 मीटर ऊंचा और 0.63 मीटर चौड़ा है, जिसकी बनावट चारों दिशाओं से एक समान दिखाई देती है. इसकी सममितीय डिजाइन और प्राचीन शिल्पकला दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है. यह सिर्फ एक मूर्तिकला नहीं, बल्कि प्राचीन भारत की सांस्कृतिक समृद्धि का जीवंत प्रमाण है.

सर सैयद का पुरातत्व और संस्कृति से विशेष लगाव
एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद ख़ां न केवल एक महान शिक्षाविद् थे, बल्कि इतिहास और संस्कृति के सच्चे संरक्षक भी थे. उनका मानना था कि ऐतिहासिक वस्तुएं राष्ट्र की धरोहर हैं, जिन्हें संजोकर रखना हमारी जिम्मेदारी है. उन्होंने कई पुरातात्विक स्थलों और इमारतों पर शोध किया और उन्हें संरक्षित करने की दिशा में कदम उठाए. उन्हीं के प्रयासों से एएमयू में संग्रहालय की स्थापना हुई, जहां कई ऐतिहासिक वस्तुएं आज भी सुरक्षित रखी गई हैं.

संरक्षण की एक प्रेरणादायक कहानी
इस स्तम्भ की स्थापना की कहानी भी उतनी ही रोचक है. प्रोफेसर एम के पुंडीर बताते हैं कि इसे पहले कुलपति लॉज के दरवाजे पर स्थापित किया गया था. बाद में कुलपति महमूदुर्रहमान ने इसे हटाकर इतिहास विभाग को सौंपा और फिर यह मूसा डाकरी संग्रहालय का हिस्सा बना. आज यह स्तम्भ न केवल इतिहास की झलक है, बल्कि सर सैयद की दृष्टि और समर्पण का प्रतीक भी है.

सांस्कृतिक विरासत की गवाही देता स्तम्भ
यह स्तम्भ महावीर स्वामी की मूर्ति को तो प्रदर्शित करता ही है, साथ ही भारतीय स्थापत्य, कला और धार्मिक परंपराओं की समृद्ध परंपरा को भी उजागर करता है. देश-विदेश से शोधकर्ता और पर्यटक इसे देखने आते हैं और इसकी शिल्पकला पर शोध करते हैं.

सर सैयद की जीवंत विरासत
यह स्तम्भ केवल एक कलाकृति नहीं, बल्कि सर सैयद की उस विरासत का हिस्सा है, जो उन्होंने एएमयू के माध्यम से देश को सौंपी. यह संग्रहालय और इसमें रखी गई वस्तुएं आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और अध्ययन का स्रोत हैं.

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