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अब फसल तोड़ेगी सारे रिकॉर्ड! खेती से पहले अपनाएं ये देसी ट्रिक, मिलेगी डबल पैदावार और कम होगी लागत

फर्रुखाबाद. मक्के की फसल के बाद अब खेतों में मकई के अवशेष खड़े हुए हैं. ऐसे समय पर किसान इसमें आग लगाकर खेत की सफाई कर देते हैं. जिसके कारण न केवल खेत में जैविक उर्वरकता कम होती है, बल्कि किसान मित्र कीट भी जलकर खत्म हो जाते हैं. इसके साथ ही पर्यावरण पर भी अधिक प्रभाव पड़ता है. इन सभी चिंताओं को देखते हुए अब फर्रुखाबाद के किसान भी बदल गए हैं. यह अब इन कामों को छोड़कर अपनाते हैं एकदम देसी वाला तरीका.

बस एक जुताई काफी
इन दिनों किसान अपने खेतों में हैरो की जुताई करके इन सभी अवशेषों को भूमि में ही मिला देते हैं. जिसके कारण बारिश के इन दिनों में जब जमकर बारिश होती है, तो यह अवशेष सड़कर मिट्टी में मिलकर जैविक उर्वरक का कार्य करते हैं. जिसके कारण आने वाली आलू की फसल के लिए खेत में पर्याप्त ताकत पहुंचाई जाती है. इसके साथ ही, जुताई के दौरान किसान ढेंचा की फ्री वाली खेती कर रहे हैं.

आलू का होगा बंपर उत्पादन

अगर आप भी आलू की फसल इस बार उगाना चाहते हैं, तो अभी कर लें यह काम. आपकी हजारों रुपए की लागत भी बचेगी और खेत में पैदावार भी डबल हो जाएगी. हम बात कर रहे हैं आलू की फसल की बुवाई के समय के उन हालातों की, जब किसानों को महंगी खाद खरीद कर डालनी पड़ती है. जिसके चलते उनकी जेब पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ता है. यही कारण है कि किसान कर्ज लेकर इस फसल को उगाते हैं. लेकिन, अब हम आपको इस रिपोर्ट के जरिए बताएंगे कि कैसे आप अपनी डबल कमाई न्यूनतम लागत में कर सकते हैं.

जिले को हासिल है टॉप उत्पादन का रिकॉर्ड
सूबे में सर्वाधिक आलू उत्पादन के लिए फर्रुखाबाद जिला अग्रणी रहा है. ऐसे समय पर यहां के किसान अपने खेतों में इस समय ऐसी फसल की बुवाई कर रहे हैं, जो कि आने वाले समय में जब आलू की तैयारी चल रही होती है, तो उस समय इसी फसल को खेत में डालकर हरी खाद तैयार करते हैं. जिसके कारण ऐसे चमत्कारी परिणाम होते हैं जो कि आलू के उत्पादन को डबल कर देते हैं, वह भी मात्र सौ रुपए में.

किसान भी बताते है फायदे

फर्रुखाबाद के कमालगंज क्षेत्र के चुरसई गांव के निवासी हर्षित बताते हैं कि वह करीब 30 साल से लगातार आलू की खेती करते आ रहे हैं. लेकिन, वह दूसरे किसानों की अपेक्षा कभी भी अधिक लागत नहीं लगाते हैं. बस समय से बारिश के इन दिनों में अपने खेतों में ढेंचा के बीजों को बो देते हैं. जब आलू की बुवाई का समय आता है, तो खेत की जुताई करके यही ढेंचा खड़ी खाद तैयार कर देता है. इसके कारण उनके हजारों रुपए की लागत भी बच जाती है और उत्पादन भी बढ़ जाता है.

मात्र इतने रुपए में करें शुरुआत
जी हां, एक फसल है ढेंचा, जो कि आमतौर पर बाजार में बीस रुपए प्रति किलो की दर से मिल जाती है. किसान इसे पांच किलो प्रति बीघा के हिसाब से अपने खेत में डालते हैं. यह फसल उगने के बाद तेज़ी से बढ़ती है और इसमें हरी खाद के भरपूर अवशेष होते हैं. इसके तेजी से बढ़ने के कारण यह खेत में घनी हरियाली के रूप में तैयार हो जाती है. जब आलू की बुवाई का समय आता है, तो किसान इस फसल को खेत में ही काट देते हैं. इसके अवशेष मिट्टी में मिलकर जैविक खाद में बदल जाते हैं. यही हरी खाद आलू के पौधों को प्राकृतिक पोषण देती है, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है.

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